आप इस पैगाम में बहुत अहम और ज़रूरी बात यानी कि नमाज़ की फर्ज़ जानेंगे हम में से कई लोग हर रोज नमाज़ अदा करते हैं तथा कुछ लोग कोई ख़ास किस्म की नमाज़ या किसी ख़ास दिन की नमाज़ अदा करते हैं लेकिन दोनों तरह के लोगों के लिए इस बात का खयाल रखना बेहद जरूरी है की नमाज़ में फर्ज़ कितने हैं।
हमे और आपको इस बात का इल्म होना बहुत ही जरूरी है कि नमाज़ में कितने फर्ज होते हैं, क्यूं कि इसके बिना हम सभों की नमाज़ कुबूल तो बहुत दूर की बात पहले शुरू ही नहीं होती, यही वजह है कि हमें और आप को तथा सभी मोमिनों को नमाज़ की फर्ज़ जरूर मालुम होना चाहिए जिसे दुरूस्त तरीके से नमाज़ अदा कर सकें।
हमने इसी बात पर गौर करते हुए इस पैग़ाम में नमाज़ के फर्ज़ को बहुत ही आसान लफ्ज़ों में लिखा है जिसे पढ़ने के बाद आप यकिनन नमाज़ की फर्ज़ की पूरी जानकारी मिल जाएगी, अगर कोइ डाउट भी होगी तो वो भी ख़त्म हो जाएगी बस इस पैग़ाम को शूरू से आख़िर तक गौर से पढें।
You Should To Know:- Namaz Ki Sharait
Namaz Mein Kitne Farz Hai
नमाज़ में 7 सात फर्ज है:
- तकबीरे तहरीमा
- कयाम करना
- किराअत करना
- रुकुअ करना
- सज्दा करना
- काअदए अखिरा
- नमाज़ पुरा करना
नमाज़ में कुल मिलाकर 7 फर्ज है पहला तकबीरे तहरीमा, दुसरा कयाम, तिसरा किराअत, चौथा रूकुअ, पांचवा सज्दा, छठां काअदए अखिरा आखिरी और सांतवा फर्ज सलाम फेर कर नमाज पुरा करना है।
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तकबीरे तहरीमा
इसका मतलब यह कि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज शुरू करना चाहिए हालांकि नमाज में कई बार अल्लाहु अकबर कहा जाता है लेकिन नमाज़ शुरू करने के वक्त जो अल्लाहु अकबर कहा जाता है वही तकबीरे तहरीमा फर्ज है इसको छोड़ने से नमाज नहीं होगी बाकी और बार भी अल्लाहु अकबर कहा जाता है उसे तकबीरे इन्तिकाल कहते हैं।
नमाज के तमाम शर्त यानी तहारत, सतरे औरत, इस्तिकबाले किब्ला वक्त और नियत का होना तकबीरे तहरीमा कहने से पहले पाया जाना ज़रूरी है अगर अल्लाहु अकबर कह चुका और कोई शर्त बाकी रहा हो तो नमाज कायम नहीं होगी।
अगर कोई बोलने के काबिल न हो यानी गुंगा हो या किसी वजह से जुबान बंद हो गई हो ऐसे शख्स को मुंह से बोलना वाजिब नहीं दिल का इरादा ही काफी है।
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कयाम करना
कयाम का मतलब नमाज में खड़ा होना इस तरह से खड़ा हो कि हाथ लम्बा करें तो घुटने तक हाथ न पहुंचे और सिधा खड़ा हो जाएं किराअत पुरा होने तक खड़ा रहें कयाम कि दौरान दोनों पांवों के दरमियान चार उंगलियों का फासला रखना सुन्नत है।
कयाम का मतलब खड़ा होना लेकिन सभी के लिए नहीं जो शख्श खड़े होने का काबिल न हो उस पर फर्ज नहीं आलस के वजह से कयाम छोड़ना हरगिज जायज नहीं और जो शख्श खड़े होने के काबिल हो वह अच्छे से खड़े हो इधर का टेढ़ा उधर का झुका दुरूस्त नहीं सिधा खड़ा रहना चाहिए।
किराअत करना
इसका मतलब यह है कि कुरआन करीम का इस तरह पढ़ना कि तमाम हुरूफ यानी हर अक्षर अपने मखरज से सहीह तौर पर अदा किया जाए कि हर हर्फ अपने में एक दुसरे से सही तौर पर अलग हो जाएं।
आहिस्ता पढ़ने में जरूरी है कि इतनी आवाज से पढ़ेंकि खुद को सुनने में आए अगर कोई अगल बगल में शोरगुल ना हो या फिर खुद में सुनने की क्षमता सही हो तो ऐसे में आवाज आपको सही से आनी चाहिए अगर किराअत खुद को ना सुनाई दे तो उसकी नमाज नहीं होती।
किराअत में सूरह फातिहा पुरी पढ़ना यानी सातों आयतें सही और पुरा पढ़ना वाजिब है सूरह फातिहा में से एक लफ्ज क्या एक हर्फ भी छोड़ना नहीं चाहिए अगर छुट जाए तो सज्दए सहव करना चाहिए।
इमाम के पीछे नमाज अदा करने पर किराअत नहीं करना चाहिए अमिरूल मोमिनीन हज़रत उमर फारूके आज़म रदिय्यल्लाहो तआला अन्हु फरमाते हैं कि जो इमाम के पीछे किरअत करता है काश! उसके मुंह में पत्थर हो।
रूकुअ करना
रूकुअ यानी कि इतना झुकना कि हाथ बढ़ाए तो हाथ घुठने तक पहुंच जाए यह रूकुअ का अदना दर्जा है इसके बाद रूकुअ का कामिल दर्जा यह कि पीठ सीधी बिछा दें, रूकुअ मेराज के बाद अता हुआ मेराज की सुबह में जो नमाजे जोहर तक पढ़ी गई तब तक रूकुअ न था इसके बाद असर कि नमाज़ में इसका हुक्म आया।
रूकुअ में कम से कम तीन मरतबा सुब्हान रब्बियल अज़िम कहना सुन्नत है तीन मरतबा से कम कहने में सुन्नत अदा नहीं होगी जबकि पांच मरतबा कहना मुस्तहब है हर रकअत में सिर्फ एक ही रूकुअ करें।
सज्दा करना
हर रकअत के बाद दो बार सज्दा करना चाहिए पेशानी का ज़मींन पर लगना सज्दा कि हकिकत है यानी कि पेशानी के साथ नाक, दोनों हाथों कि हथेलियां, दोनों घुठने और दोनों पांव कि उंगलियां कुल आठ जिस्म कि अंग लगना जरूरी है।
आपको शायद मालूम होगा कि इमाम मुस्लिम ने हजरत अबू हुरैरा रदिय्यल्लाहो तआला अन्हु रिवायत कि की हुजुरे अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बंदे को खुदा से सबसे ज्यादा नजदीक सजदा मे हासिल होता है।
खुदाए तआला के सिवा किसी को भी सजदा करना जाइज नहीं गैरे खुदा को इबादत का सजदा करना सिर्क है और ताजिम का सजदा करना हराम है, यानी कि सजदा करते वक्त सिर्फ यह नियत मन में रखे कि हम अपने रब यानी कि अल्लाह तबारक व तआला कि सजदा कर रहे हैं।
हमारे पांव की एक उंगली का पेट जमीन से लगना फर्ज है अगर किसी ने इस तरह सज्दा किया की दोनों पांव जमीन से उठा रहे तो नमाज ना होगी बल्कि अगर सिर्फ उंगलियां की नोक जमीन से लगी तो भी नमाज ना होगी।
सज्दा में कम से कम तीन मरतबा सुब्हान रब्बियल अला पढ़ना सुन्नत है तीन मरतबा से कम पढ़ने में सुन्नत अदा न होगी जबकि पांच मरतबा कहना मुस्तहब है सुब्हान रब्बियल अला कहते वक्त इतनी देर में एक के बाद एक पढ़ें कि बीच में सुब्हान अल्लाह कहा जा सके लेकिन कहना नहीं है।
काअदए अखिरा
इसका मतलब यह है कि नमाज़ का आखिरी करना जिसके बाद सलाम फेर कर नमाज पुरी कि जाती है यानी कि नमाज की रकअतें पुरा करके कादाए अखिरा में इतनी देर बैठना कि पुरी अत्तहियात पढ़ ली जाए यही फर्ज है।
काअदए अखिरा में पुरा तशह्हुद पढ़ना वाजिब है तशह्हुद पढ़ते वक्त उसके माना का इरादा जरूरी है यानी कि तशह्हुद पढ़ते वक्त यह इरादा करे कि मैं अल्लाह तआला का हम्द यानी कि तारीफ करता हूं।
काअदए अखिरा में तशह्हुद पढ़ना भुल जाए तो सज्दए सहव करना वाजिब है तशह्हुद के बाद दुरूद शरीफ और दुआ ए मासुरह पढ़ना सुन्नत है अफज़ल यह है कि दुरूद शरीफ में दुरूदे इब्राहिम पढ़ें इसमें सय्यिदिना कहना अफज़ल है।
नमाज़ पुरा करना
इसका मतलब यह है कि अपने इरादे से नमाज से बाहर आना यानी नमाज पुरी करना काअदए अखिरा के बाद सलाम करना जो नमाज़ से बाहर कर दे, अगर सलाम के अलावा कोई इरादा हो तो नमाज वाजिब होगी यानी नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब होगा।
नमाज़ पुरी करने के लिए अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहना सुन्नत है अलैकुमुस्सलाम कहना मकरूह है और आखिरी में व बरकातुहू भी नहीं मिलाना चाहिए सलाम फेरते वक्त मन में इरादा रखें कि हम फरिश्तों को सलाम कर रहे हैं।
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आखिरी बात
आप ने इस पैगाम में नमाज़ की फर्ज़ की पुरी इल्म बहुत ही कम वक्त और आसान लफ्ज़ों में इल्म हासिल किया हमे उम्मीद है, की इसमें लिखी बात आप आसानी से समझ गए होंगे और आप नमाज़ के फराईज की मुकम्मल जानकारी हासिल कर लिए होंगे अगर अभी भी नमाज़ की फर्ज़ से जुड़ी कोई सवाल हो तो हमसे पूछ सकते हैं।
हमने इस पैगाम को हिन्दी जबान के साथ साथ बहुत ही आसान लफ्ज़ों में पेश किया है क्यूंकि हमारा मकसद शुरू से अभी तक तो यही रहा है कि हम अपने मोमिनों को पूरा जानकारी बहुत ही आसान लफ्ज़ों में लिखें जिसे वो आसानी से समझ जाएं और मज़हब ए इस्लाम का हुक्म पालन करें।
अगर यह पैग़ाम आपको मददगार साबित लगा हो तो इसे अपने अजीजो अकारिब दोस्त रिश्तेदार सभों तक शेयर करके पहुंचाएं और अपने नामाए अमाल में सवाब का इज़ाफा करें क्यूंकि आपकी इस छोटी सी कोशिश से बहुत लोग इल्मदार होंगे और सही से नमाज़ अदा करेंगे।
Masaallah
Masallah
App ne bahut accha se likhe is baat
Masha Allah bahot hi asan tarike se samjhaya hai aapne
Sajde me pahale naak kis taraha lagana chahi ye,naak ka surak ka hissa pahale lagana chahiye ya naak ka naram jagaha lagana chahiye?
Pahle To Naak Ka Upri Hissa Uske Baad Naram Haddi Bhi Dabna Chahiye