आज हम यहां पर जानेंगे कि जुम्मा की नमाज पढ़ने का सही तरीका क्या होता है, हम सभी मुसलमानों के दरमियान हर सप्ताह में जुम्मे का दिन आता है, इस दिन हम सभी मोमिन भाई लोग एक जगह जमा होकर नमाज ए जुम्मा अदा करते हैं, हमें और आपको चाहिए कि भले ही और दिन नमाज में शिरकत ना कर पाए लेकिन इस दिन जरूर करें।
क्योंकि नमाज हम मोमिनो को बुरे और बेहयाई कामों से रोकती है तथा नमाज कायम करने से हमारा संबंध अल्लाह के साथ बहुत मजबूत होता है, हम सभी को नमाज अच्छे तरीके से पढ़ना चाहिए क्योंकि हमारा रब ऐसे बंदे को बहुत पसंद करता है जो उसके बताए हुए रास्तों पर चला करते हैं।
तो आज हम जानेंगे कि जुम्मा की नमाज का तरीका दुरुस्त और मुकम्मल कैसा होता है साथ ही जुम्मा की नमाज से जुड़ी जुम्मे की नमाज की नियत जैसी सभी बातें जानेंगे।
Jumma Ki Namaz Ka Tarika
जुम्मा की दिन सब मिलाकर कुल 14 चौदह रकात नमाज़ अदा की जाती है, सबसे कब्ल आप जुम्मा के दिन 2 दो रकअत दाखिल मस्जिद की नमाज़ अदा करेंगे, इसके बाद 4 चार रकअत जुम्मा की सुन्नत अदा करेंगे, फिर जमात के साथ 2 दो रकअत फर्ज पढ़ा जाता है।
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इसके बाद 4 चार रकअत जुम्मा में सुन्नत अदा करेंगे, अगर आप जुम्मा की नमाज गांव कस्बों में अदा कर रहे हैं तो यहां पर आपको 4 चार रकअत जुहर की फर्ज जमात के साथ पढ़ाया जाता है, फिर खुद से 2 दो रकअत की सुन्नत अदा करेंगे अब आख़िरी में 2 दो रकअत नफ्ल पढ़ेंगे।
यहां तक आप की जुम्मा की पुरा नमाज़ मुकम्मल हो जाएगी, इसमें सिर्फ दो रकअत और चार रकअत की नमाज़ अदा करना होता है इसीलिए हमने आपको नीचे दो रकअत की नमाज़ अदा करने का तरीका और चार रकअत की नमाज़ अदा करने का तरीका बताया है।
जुम्मा की 4 रकात नमाज़ अदा करने का तरीक़ा
- जुम्मा की नमाज अदा करने के लिए सबसे पहले नियत करें
- इसके बाद सना सुब्हानकल्लाहुम्म व बि हम् दिक व तबारकस्मुक व तआला जद्दुक व लाइलाह गैरुक पढ़े।
- इसके बाद अउजुबिल्लाहि मिनशशैतानिर्रजीम फिर बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम पढ़े।
- इसके बाद अल्हम्दु शरीफ यानि सूरह फातिहा पढ़ने के बाद कोई सुरह पढ़े।
लेकिन अगर इमाम के पीछे नमाज अदा कर रहे हैं तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आपको अल्हम्दु शरीफ और सूरह की तिलावत यानी उसे नमाज में पढ़ना नहीं है आपको बस खामोश खड़े सुनना है।
इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकुअ में जाए इस तरह से की घुटनों को हाथों से पकड़ लें घुटनों पर उंगलियों को फैला कर रखें इतना जरुर झुके की सर और कमर बराबर हो जाए, यहां पर कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम कहें।
फिर दोनों हाथ छोड़कर सीधा खड़ा हो जाएं इस वक्त आपको रब्ब्ना लकल हम्द कहना है इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदे में जाएं।
सज्दा इस तरह से करें कि सबसे पहले घुटने को रखें फिर दोनों हाथों को जमीन पर फेरे, इसके बाद नाक और फिर पेशानी खूब अच्छे से जमाएं, यहां पर आपको चेहरा दोनों हाथों के दरमियान रखना है, फिर तीन बार कम से कम सुब्हान रब्बियल अअला कहें।
फिर अल्लाहू अकबर कहते हुए बैठ जाएं फिर तुरंत अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरा सज्दा करें यहां पर भी आपको सुब्हान रब्बियल अअला कम से कम तीन मर्तबा कहना है।
यहां तक आप की पहली रकअत मुकम्मल हो गई, इसके बाद अल्लाहू अकबर कहते हुए सीधे खड़े हो जाएं क्योंकि हमें चार रकअत पढ़नी है, इसके बाद बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर अल्हम्दु शरीफ और सुरह पढ़े।
फिर आपको जैसे मैंने उपर में बताया है उसी तरह रुकुअ और सज्दा करना है लेकिन यहां पर सीधे खड़े होने के बजाय आप को बैठ जाना है फिर तशहहुद यानी अतहियात पढ़ना है।
जब अतहियात पढ़ने के बाद कलिमे ला के करीब पहुंचे तो दाहिने हाथ की शहादत उंगली को उठाना है जब कलिमा शरीफ पुरा हो जाए तो आपको अल्लाहू अकबर कहते हुए उठ कर सीधा खड़ा हो जाना है।
इसके बाद आप को बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर अल्हम्दु शरीफ और कोई भी सुरह पढ़ना है फिर रुकुअ सजदा उसी तरह यहां भी करना है सजदे के बाद अल्लाहु अकबर कहते हुए फिर खड़े हो जाना है।
फिर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़ने के बाद अल्हम्दु शरीफ और सूरह पढ़कर रुकुअ व सजदा करना है, लेकिन यहां पर फिर से सीधे खड़े होने के बजाय बैठ जाना है, आपको अपनी है बाया पैर को बिछाकर बैठना है और दाहिने पैर के पांव को खड़ा करके उंगली को किब्ला की ओर रुख देना है।
इसके बाद अत्तहियात को पढ़कर यहां पर भी आपको अपनी दाहिने हाथ की शहादत उंगली को उठाना है, फिर दुरूद शरीफ और दुआए मासूरह पढ़ने के बाद अस्सलाम वालेकुम व रहमतुल्लाह कहते हुए सलाम फेर लें।
अगर आपको नियत नहीं मालूम है तो नीचे की जानिब जुम्मा के दिन पढ़ी जाने वाली नमाज़ों की सभी नियत लिखी गई है आप उसको अच्छे से पढ़कर जरूर याद कर लें।
जुम्मा की दो रकअत नमाज पढ़ने का तरीका
सबसे पहले आपको यहां पर भी नियत करना है जिस भी नमाज को आप अदा कर रहे हैं उस नमाज़ की नियत करें जैसे कि जुम्मा में दो रकअत की नमाज दाखिल मस्जिद, फर्ज, सुन्नत और नफ्ल पढ़ी जाती है, अगर याद ना हो तो दिल में ही नियत करलें क्योंकि खुदा तो उनकी भी नमाज कुबूल करता है जिनकी जुबां नहीं होती।
इसके बाद आपको सना पढ़ना है सुब्हानकल्लाहुम्म व बि हम् दिक व तबारकस्मुक व तआला जद्दुक व लाइलाह गैरुक पढ़े।
फिर अल्हम्दु शरीफ और सुरह पढ़ कर रुकुअ और सज्दा करें जो तरीका मैने आपको उपर में बताया है यहां तक आप की पहली रकअत मुकम्मल हो गई।
फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरी रकअत के लिए खड़े हो जाएं, यहां पर भी बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर अल्हम्दु शरीफ और कोई सूरह पढ़े फिर रूकुअ सज्दा करें।
इसके बाद आप की दो रकअत मुकम्मल हो गई, इसके बाद बैठ जाइए जैसे बैठने का तरीका उपर में बताया है इसके बाद अतहियात पढ़े शहादत उंगली उठाएं फिर दुरूद शरीफ और दुआए मासुरह पढ़ने के बाद सलाम फेर लें।
आपको यहां पर मैंने जुम्मा में पढ़ी जाने वाली दोनों प्रकार की नमाज़ पढ़ने का तरीका बताया है, जुम्मे के नमाज़ में दो और चार रकअत की नमाज पढ़ी जाती है हमने आपको दोनों बताया है बस आपको नियत अलग अलग करना होगा।
जुम्मा क्या है?
हम सभी मुसलमानों के लिए जुम्मे का दिन सबसे आला और अफजल दिन है, हम सभी ही कितने खुशनसीब हैं कि हमारा मजहब में इतना आला और अफजल दिन है, इस दिन यानि जुम्मे को छोटा ईद भी कहा जाता है, इस जुम्मे के दिन को सभी दिनों का सरदार कहा जाता है।
अगर सच कहूं अपने दिल की बात तो यह दिन हम सभी के लिए बहुत ही बड़ी सप्ताहिक नेमत है, इस दिन को सबसे बड़ी नेमत कहने का सबसे बड़ा वजह यह है कि इसी दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश है, और हम सभी के लिए इस दिन की फजीलत भी बहुत है।
इस दिन की दुआ बारगाह ए खुदा में बहुत जल्द कुबूल होती है, अगर इस दिन हमारी रूह तन से जुदा होगी तो हमे अजाबे कब्र से राहत मिलेगी और जहन्नम की सोलो से बचेंगे इसीलिए तो हर मोमिन अपने लिए दुआ करता है कि जब भी रूह तन से जुदा हो जिन जुम्मा हो।
जुम्मा की नमाज़ की रकात
सबसे पहले चार रकअत सुन्नत अदा करें।
फिर इमाम के पिछे दो रकअत फर्ज अदा करें।
फिर चार रकअत सुन्नत जमात से या खुद से अदा करे।
फिर इसके बाद जुम्मा की दो रकअत सुन्नत अदा करें।
सबसे अंत में दो रकअत नफ्ल की नमाज़ अदा करें।
जुम्मा की नमाज़ की रकात कुल मिलाकर 14 होते हैं, चार रकअत सुन्नत दो रकअत फर्ज फिर चार रकअत सुन्नत फिर दो रकअत सुन्नत इसके बाद नफ्ल की नमाज़ अदा करना होता है, लेकीन मस्जिद में दाखिल होने के भी दो रकअत नमाज अदा करना चाहिए।
जुम्मा की नमाज़ की नियत
दाखिल की दो रकअत सुन्नत:- नियत कि मैंने दो रकअत नमाज मस्जिद में दाखिल होने की सुन्नत रसूले पाक की वास्ते अल्लाह तआला के मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला रकाति सलावतिल दुखुलिल मस्जिद सुन्नत रसुलल्लाहे मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
जुम्मा की चार रकअत सुन्नत:- नियत की मैंने चार रकअत नमाज सुन्नत की वास्ते अल्लाह तआला के वक्त जुम्मे का मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला आरबा रकाति सलावतिल कब्लल् जुम्अती सुन्नत रसुलल्लाहे मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
जुम्मा की दो रकअत फर्ज:- नियत की मैंने दो रकअत नमाज़ फर्ज की वास्ते अल्लाह ताला के वक्त वक्त जुम्मे का पीछे इस इमाम के मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला रकाति सलावतिल जुम्अती फर्जुल्लाहे मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
बाद जुम्मा चार रकअत सुन्नत:- नियत की मैंने बाद जुम्आ चार रकअत नमाज़ सुन्नत रसूले पाक की वास्ते अल्लाह ताला के पीछे इस इमाम के मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला आरबा रकाति सलावति बाद्अल जुम्मती सुन्नत रसुलल्लाहे मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
जुम्मा की दो रकअत सुन्नत:-नियत की मैंने दो रकअत नमाज़ जुम्मा की सुन्नत रसूले पाक की वास्ते अल्लाह के मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला रकाति सलावति बाद्अल जुम्मती सुन्नत रसुलल्लाहे मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
नफ्ल की दो रकअत की नियत:- नियत की मैंने दो रकअत नमाज़ नफ्ल की सुन्नत रसूले पाक की वास्ते अल्लाह तआला के मुंह मेरा काअबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर।
अरबी नियत हिन्दी में:- नवैतुवन उसल्लीय लिल्लाही तआला रकाति सलावति नफ्ल मुतवाजि़हन इल्लाजिहातिल काअबतिश सरीफत्ही अल्लाहू अकबर।
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जुम्मा की नमाज़ औरतों की
जुम्मा की नमाज के लिए औरतों के यह हुक्म है कि उस वक्त वे जुहर की नमाज़ अदा करें, सबसे पहले आपको यह बता दे कि हमारी मां बहनों के लिए जुम्मे की नमाज नहीं होती, क्यूंकि हमारा मजहब में कुछ ऐसे नमाज भी हैं जो बगैर जमात के पूरी नहीं हो सकती, और उसी नमाज में एक जुम्मे का नमाज भी आता है।
जबकि औरतों के लिए जमाअत मना है, हमारी सभी इस्लामी मां बहनों के लिए जुम्मे का वक्त में जुहर की नमाज अदा करने का हुक्म है, आपको चाहिए कि जुम्मे के दिन अपने ही घर पर नमाजे जुहर की वक्त जुहर का नमाज़ मुकम्मल करें।
जुम्मा फर्ज होने की शर्तें
यहां पर हम जानेंगे कि हैं जुम्मा की नमाज़ किनके लिए फर्ज मतलब जरुरी है:-
- शहर में मुकीम और आज़ाद होना
- सेहत मंद जो मस्जिद तक जा सके
- मर्द आकिल यानी अकलमंद, बालिग होना
- आंख वाले मतलब देखने को काबिल होना
- किसी भी तरह का कैद दार न होना
- किसी प्रकार से खतरा में न होना
जुम्मा जायज होने की शर्तें
यहां पर हम जानेंगे कि वह कौन-कौन सी शर्तें हैं जिनके बगैर जुम्मा की नमाज नहीं होगी:-
- शहर का होना
- बादशाहे इस्लाम
- वक्त ए जोहर का होना
- खुत्बा का होना
- नमाज़ से पहले खुत्बा होना
- जमाअत का होना
- इज़ने आम – जिस जगह पर जुमे की नमाज अदा की जा रही हो वहां पर किसी को भी आने जाने की रोक टोक ना हो।
जुम्मा की नमाज़ से जुड़ी कुछ जरुरी बातें
- जुम्मा की दो रकअत फर्ज नमाज के बाद चार रकअत की सुन्नत नहीं पढ़ी जाती है बल्कि यहां पर जोहर की फर्ज पढ़ना होता है।
- जब इमाम खुत्बा पढ़ रहे हो तो इस दौरान कोई भी नमाज ना अदा करें और ना ही किसी प्रकार का अजकार या कलाम न पढ़े।
- नमाज ए जुम्मा के लिए जल्दी जाना और अगली सफ में बैठना मुस्तहब है, जितना जल्दी आप तशरीफ ले जाएंगे उतनी ही आप सवाब दार होंगे।
- किसी को भी बिना वजह के तीन जुम्मा की नमाज़ नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि जुम्मा के फर्ज होने का इनकार करने वाला काफिर कहलाता है।
- हम लोग को जुम्मा के नमाज के लिए अजान होने के बाद किसी भी प्रकार का कार्य में समय नहीं बिताना चाहिए क्योंकि ऐसा करना हराम कहा गया है।
FAQ
क्या जुम्मा छूट जाने के बाद अदा कर सकते हैं?
आप अकेले से इस नमाज को अदा नहीं कर सकती हैं हां इस जगह पर आप जुहर की नमाज पढ़ सकते हैं।
जुम्मा की वक्त कब होता है?
जुम्मा के नमाज के लिए वक्त जुहर के वक्त होता है इस वक्त के अंदर जुम्मा की नमाज अदा कर लेनी चाहिए।
जुम्मा की नमाज़ फर्ज या वाजिब है?
हम सभी अकलमंद और बालिग मोमिन भाइयों के लिए जुम्मा का नमाज़ फर्ज़ है इसकी फर्जियत जुहर से ज्यादा मुअक्कद है।
जुम्मे की नमाज़ किसके लिए फर्ज नहीं है?
जुम्मे की नमाज़ ऐसे लोगों के लिए फर्ज नहीं है जो पागल हो दीवाना अंधा हो लंगड़ा हो मुसाफिर हो रोगी हो वगैरह।
अज़ान के बाद नमाज़ ए जुम्मा में शामिल होना कैसा है?
जुम्मा की नमाज के लिए अजान का शर्त नहीं है लेकिन आपको चाहिए कि जितना जल्द हो सके नमाज़ ए जुम्मा के लिए हाजिर हो जाए।
आखिरी बात
हमने इस पैगाम के जरिए आप सबको जुम्मा की नमाज अदा करने का मुकम्मल और दुरुस्त तरीका पहुंचाया है, इसके साथ साथ और भी जुम्मा की नमाज से और जुम्मा के दिन से जुड़ी अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी दी है, इसे पढ़ने के बाद आप जुम्मा की नमाज अदा करने का मुकम्मल तरीका जान गए होंगे।
हमने इस आर्टिकल को बहुत ही आसान लफ्जों में लिखा है जिसका मकसद यह है कि पढ़ने वाले को सभी लफ्ज़ आसानी से समझ आ जाए इल्म हासिल हो जाए अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो अपना शुकराना लफ्ज़ कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताएं।
Good
Bahot khub